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कविता

एक वृक्ष भी बचा रहे

नरेश सक्सेना


अंतिम समय जब कोई नहीं जाएगा साथ
एक वृक्ष जाएगा
अपनी गौरैयों-गिलहरियों से बिछुड़कर
साथ जाएगा एक वृक्ष
अग्नि में प्रवेश करेगा वही मुझ से पहले

'कितनी लकड़ी लगेगी'
शमशान की टालवाला पूछेगा
गरीब से गरीब भी सात मन तो लेता ही है

लिखता हूँ अंतिम इच्छाओं में
कि बिजली के दाहघर में हो मेरा संस्कार
ताकि मेरे बाद
एक बेटे और एक बेटी के साथ
एक वृक्ष भी बचा रहे संसार में

 


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